जहाँ न पहुँचे रवि , वहाँ पहुँचे कवि ||
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Gazal No. 01 :-
प्रारम्भ :-
कोई पहलू निकालता क्यों हैं ,
बात-बातों में टालता क्यों हैं |
अपने पिंजरे में याद के पंछी ,
तोता मैना को पालता क्यों हैं |
भर गया जख्म फिर भी सीने में ,
दर्द रह रह के सालता क्यों हैं ||
टूट जाते हैं कच्ची मिट्टी के ,
इन खिलौनों को ढालता क्यों हैं |
बूंद भर भी न मय बची तल में ,
फिर भी प्याला खंगालता क्यों हैं |
अब पकेंगे न स्वप्न पथराए ,
उनको फिर फिर उबारता क्यों हैं ||
क्यों जलाता नहीं पुराने खत ,
इनको इतना संभालता क्यों हैं |
बीच कमरे में बाल दीपक को ,
एक कोने में बालता क्यों हैं |
जीने मरने का फैसला करने ,
तु ये सिक्का उछालता क्यों हैं |
आदमी ठीक , तु न कवि अच्छा ,
तुझको ऎसा मुगालता क्यों हैं ||
=> Gazal No. 02<=
" अगर पिता की बताई राह पर चला होता ,
तो ना ठोकरें खाता और ना ही छला होता || "
जिंदगी जब बिखरी , तब हुआ ये एहसास ,
अगर माँ की सुनता तो , कितना भला होता ||
समझा होता गर भाई के थप्पड़ का मतलब ,
तो जीवन में आज उठा ना जलजला होता ||
वक्त पर पढ लेता गर बहते आंसू बहनों के ,
तो दूनिया मे मेरी भी हंसियों का मेला होता ||
झुककर अगर छूवा होता , पांव बड़े - बुजुर्गों के ,
तो श्राप मे मुझे अश्के आालम ना मिला होता ||
आज समझा हूं क्यूं छूटे दोस्त कदम दर कदम ,
गर अच्छा करता तो साथ मेरे काफिला होता ||
छोड़ गलत काम जी होती , गर अच्छी जिंदगी ,
तो आंगन में तेरे भी 'राजकुमार' हर फूल खिला होता ||
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>> राजकुमार देशमुख , संपर्क - मो. नं. ७५०९७३०५३७
This Gazal Is Posted By
Rajkumar Deshmukh
, On 24 August 2016 , Wednesday. @ 11:43 PM